भारत का सबसे बड़े जासूस रवीन्द्र कौशिक की जीवनी, कहानी,पत्नी, बच्चे | Great Raw Agent Ravindra kaushik Biography in hindi

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रॉ एजेंट रवीन्द्र कौशिक का जीवन परिचय

बहुत से लोगो को भारतीय जासूस रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) के जीवन और उनकी जासूस करने की कहानी के बारे में अच्छे से पता होगी भारत के ऐसे कई जासूस थे और आज भी ऐसे कई जासूस जिन्दा है जिसने पाकिस्तान में रहकर भारत के लिए जासूसी का काम किया है बहुत से ऐसे जासूस है जो पकड़े गए तो कुछ ऐसे भी जासूस है जो अपनी चतुराई से पाकिस्तान को धोखा देकर पाकिस्तान से भाग निकला तो ऐसे एक जासूस रवीन्द्र कौशिक के जीवन और से जुड़ कुछ महत्वपूर्ण बाते जानेंगे की आखिर रवीन्द्र कौशिक जासूसी की दुनिया में किस प्रकार घुसा।

और आज के समय में अजीत डोभाल के बारे में भी जानते ही होंगे अगर नहीं जानते है तो उनके नाम पर क्लिक करके आखिर उनके बारे में भी शुरू से बेहतर तरीके से इस ब्लॉग में जान सकते है।

Ravindra kaushik photo
रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik)

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) आखिर किस तरह एक जासूस बनकर पाकिस्तान में घुसता है वहां किसी को शक न हो उसके लिए पाकिस्तान के एक कॉलेज में दाखिला लेता है। पाकिस्तान की कॉलेज डिग्रियां लेता है फिर कैसे वहां पाकिस्तान की फ़ौज में घुस जाता है उसके बाद पाकिस्तान की ही एक लड़की से शादी भी करता है और उनसे उनके बच्चे भी होते है। सब कुछ ठीक चल रहा होता है लेकिन भारत सरकार की एक गलती से जासूस रवीन्द्र कौशिक पकड़ लिया जाता है और उसके बाद उसे जेल में बंद जार दिया जाता है रवीन्द्र कौशिक की सच्चाई पता चलने के बाद उनकी बीबी छोड़ देती है।

रॉ एजेंट रवीन्द्र कौशिक पाकिस्तान में करीब 25 गुजारा और उस 25 साल में रवीन्द्र कौशिक कई बार भारत भी आये वो अपने भाई के शादी में भी आया। फिर अपने मिशन के तहत पाकिस्तान चला जाता था और शायद उसके बाद कभी रवीन्द्र कौशिक भारत नहीं आ पाया। रवीन्द्र कौशिक की मौत पाकिस्तान में ही हुई भारत सरकार को सब पता होने के बावजूद भी उनके परिवार द्वारा दर दर ठोकरे खाने के बाद भी उनके परिवार को इंसाफ नहीं मिल पाया। उनेक मृत शरीर को पाकिस्तान में ही दफ़न कर दिया गया उनको अपने देश की मिटटी तक नसीब नहीं हुई कारण सरकार का गलत फैसला और उसके बाद उनका किसी भी तरह का मदद नहीं करना।

उसके बाद रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) के परिवार के साथ पाकिस्तानी सेना क्या करते है आज के वक्त में रवीन्द्र कौशिक का परिवार कहाँ है। रवीन्द्र कौशिक के बच्चे कहाँ हैं उनकी बीबी कहाँ है क्या वो जिन्दा है इसको लेकर पाकिस्तानी रिपोर्ट का क्या कहना हैं? जानेंगे पुरे विस्तार से रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) से जुड़ी हर पहलु के बारे में।

Ravindra kaushik Birthday (जन्मदिन)11 अप्रैल सन् 1952
Ravindra kaushik age (उम्र)49 वर्ष (2001)
Birth Place (जन्मस्थान)राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में
Ravindra kaushik Occupation (पेशा)Raw Agent (जासूस)
Ravindra kaushik wife (पत्नी)अमानत
Ravindra kaushik son, Daughterson – Aareeb (आरिब)
Ravindra kaushik death date (मृत्यु/पुण्यतिथि) 21 नवम्बर 2001
Ravindra kaushik father name (पिताजी) जे एम कौशिक
Ravindra kaushik mother name (माताजी)
रवीन्द्र कौशिक भाई – बहन 4
रवीन्द्र कौशिक Ravindra kaushik ka photo

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) का जन्म व परिवार

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रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) का जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में 11 अप्रैल सन् 1952 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। श्रीगंगानगर जिला पाकिस्तान से सटा हुआ मालूम पड़ता है, रवीन्द्र कौशिक के पिताजी का नाम जे एम कौशिक है जो एयर फ़ोर्स में रह चुके हैं। रवीन्द्र कौशिक के पिताजी कब के रिटायर हो चुके थे और एक मिल में काम किया करते थे, रविन्द्र कौशिक 4 भाई बहन थे जिसमे ये दूसरे नंबर पर थे। रवीन्द्र कौशिक के माता जी जा का निधन 2006 में हुई। रवीन्द्र कौशिक का एक भतीजा भी जिसका नाम विक्रम वशिष्ट है जो शायद अभी जयपुर में ही रहते हैं।

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) के परिवार में बच्चों में सबसे बड़ी Ravindra kaushik की बहन थी रवीन्द्र कौशिक को बचपन से ही थियेटर करने का बड़ा शौक़ीन था, और जब रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) कॉलेज में पढाई करता था तब भी वो खूब थियेटर किया करता था। रवीन्द्र कौशिक ने अपनी पढाई श्रीगंगानगर (राजस्थान) के गवर्नमेंट स्कूल से की उसके बाद रवीन्द्र कौशिक ने B.com किया और जब पाकिस्तान गए थे तब रवीन्द्र कौशिक ने वहां से LLB की डिग्री हासिल की।

Ravindra kaushik mother
रविन्द्र कौशिक की मां
Ravindra kaushik brother
रविन्द्र कौशिक का भाई

रवीन्द्र कौशिक का जासूस बनने तक की कहानी

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) का जासूस बनने की कहानी एक थियेटर से ही शुरू होती है और उसकी थियेटर ही उन्हें एक जासूस बनने का मौका देती है। एक दिन लखनऊ में सन् 1975 में थियेटर का कार्यक्रम होने जा रहा था जिसमे रवीन्द्र कौशिक भी अपना एक्टिंग का प्रदर्शन करते हैं। उस थियेटर में कुछ रॉ के कुछ ऑफिसर भी कार्यक्रम देखने आये थे जो पहले भी रवीन्द्र कौशिक का थियेटर कार्यक्रम देख चुके थे। तो इस थियेटर में रवीन्द्र कौशिक एक भारतीय जासूस का किरदार में था और इन्होने इस किरदार को इतने बेहतर ढंग से निभाया था कि वहां बैठे रॉ के ऑफिसर को उसकी कलाकारी बेहद ही पसंद आ जाती है।

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) उस थियेटर में एक भारतीय जासूस का किरदार कर रहे थे जिसे चीन ने पकड़ लिया था, और उससे सच्चाई उगलवाने के लिए उस जासूस को बेरहमी से पिट रहा था। लेकिन वो जासूस कुछ भी नहीं बताता है अपनी जुबान तक नहीं खोलता है जिसे देखकर रॉ के अधिकारी को उसकी एक्टिंग पसंद आ गई थी।

उसके बाद वो रॉ के अधिकारी उससे अकेले में मिलने के लिए कहता है और मिलने के बाद रॉ के अधिकारी रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) से कहता है, कि तुमने बहुत ही अच्छी एक्टिंग की है। लेकिन ये तुम कब तक थियेटर में एक्टिंग करते रहोगे अगर तुम इससे बड़ा कुछ करना चाहते हो तो तुम हमारे दिल्ली के ऑफिस में आओ वहां तुम्हारे लिए हमारे पास इससे भी बड़ा काम है। तो रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) नवम्बर – दिसम्बर 1975 में उससे मिलने के लिए दिल्ली पहुँच जाता है, वहां पहुँचने के बाद रवीन्द्र कौशिक से दो लोग मिलते हैं जो ऑफिस तक ले जाते हैं।

वहां जाने के बाद पहली बार देश की खुफिया एजेंसी के बारे में पता चलती है, तो वहां पर रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) से बातचीत होती है और उसके बाद रवीन्द्र कौशिक को रॉ के ऑफिसर कहते हैं। क्या तुम सच में एक रॉ के अधिकारी यानि एक जासूस बनना चाहोगे?उसके बाद बहुत सोच विचार करने के बाद रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) हाँ कर देता है और भारत का जासूस बनने के लिए तैयार हो जाता है। और उसके बाद रवीन्द्र कौशिक को बाकायदा दिल्ली और कुछ जगहों पर ट्रेनिंग दी जाती है।

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) को पंजाबी बोलनी आती थी तो पाकिस्तान में ज्यादा उर्दू और पंजाबी ही बोली जाती थी तो उसके लिए रवीन्द्र कौशिक उर्दू बोलना सिखाया जाता है।

रवीन्द्र कौशिक को इस्लामिक की एक एक चीज की तालीम दी जाती है उसे अरबी सिखाई जाती है कुरान सरीफ पढाई जाती है नमाज कैसे पढ़ा जाता है वो सिखाई जाती है। उसके बाद रवीन्द्र कौशिक का बाकायदा नाम बदला जाता है और उसी नाम से पाकिस्तान के पते पर एक नकली पहचान पत्र भी बनाया जाता है। तो पाकिस्तान में पहले से ही कुछ भारतीय जासूस घुसे हुए थे जो पाकिस्तान में घुसने के लिए रवीन्द्र कौशिक का पूरा इन्तेजाम कर देती है। उसे वो हर छोटी छोटी चीज सिखाई जाती है जो प्रतिदिन इस्लामिक धर्म में प्रयोग किया जाता है, उसके बाद आखिरी में रवीन्द्र कौशिक का खतना भी किया जाता है

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) से रॉ के अधिकारी पहले ही कहते है कि इसके बारे तुमको किसी को भी नहीं बताना है और न ही अपने घर वालो को कि तुम एक जासूस हो और तुम क्या करते हो, तुम्हारी तनख्वाह तुम्हारे घर वालो की मिलती रहेगी उसके लिए तुम बेफिक्र रहना।

रवीन्द्र कौशिक को जब एक जासूस के तौर पर ट्रायल पर भेजा गया

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) का ट्रेनिंग पूरा हो जाने के बाद अब वक्त था परीक्षा का तो इसके लिए रवीन्द्र कौशिक को कई देशो में एक जासूस के रूप में उसकी परीक्षा लेने के लिए भेजा जाता है। जिसमे रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) पास हो जाता है, उसके बाद रवीन्द्र कौशिक को एक छोटे से मिशन पर पाकिस्तान भी भेजा जाता है और इसमें भी सफल हो जाता है। करीब 1975 से 1977 तक रवीन्द्र कौशिक की प्रशिक्षण चला था, और उसके बाद रवीन्द्र कौशिक को एक लम्बे मिशन पर भेजने की तैयारी होती है जिसमे उसे पाकिस्तान भेजने की तैयारी की जा रही थी।

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) को पाकिस्तान में एक लम्बे समय तक रहकर भारत तक पाकिस्तान की सारी ख़ुफ़िया जानकारी भेजने की जिम्मेवारी दी गई। रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) को पाकिस्तान भेजने का एक बड़ा मकसद था वो था 1965 के साथ पाकिस्तान से लड़ाई और उसके बाद 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से अलग करने का सबसे बड़ा श्रेय भारत को ही जाता है जिसमे भारत के सैनिक पाकिस्तान के सेना को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था जिसको लेकर पाकिस्तान बहुत अलबला गया था भारत के खिलाफ साजिश कर रहा था।

तो आखिर पाकिस्तान भारत के खिलाफ क्या क्या साजिश कर रहा है और किस तरह का प्लानिंग कर रहा है हराने के लिए तो खास करके इस मकसद से रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) ये सब पता लगाने के लिए पाकिस्तान भेजा गया था। जिसमे रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) पूरी तरह सफल होते है यूँ कहें कि जितना भारत के रॉ अधिकारी सोचा भी नही था उससे कई गुणा ज्यादा कर जाता है।

रवीन्द्र कौशिक का पाकिस्तान में प्रवेश

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) का पाकिस्तान घुसने से पहले ही रवीन्द्र कौशिक का पाकिस्तान का लगभग सारा ID Card बन चुका था। चूँकि पाकिस्तान में पहले से ही कुछ छोटे मोटे जासूस अपनी पैर जमा चुके थे तो उसकी मदद से ये सब आसान हो गया था। तो रवीन्द्र कौशिक पाकिस्तान आसानी से प्रवेश कर जाता है उसके बाद रवीन्द्र कौशिक धीरे धीरे अपना ओईर भी जमाना शुरू करता है। जब रवीन्द्र कौशिक पाकिस्तान गया था उस वक्त उसकी उम्र सिर्फ 23 से 24 साल ही थी। रवीन्द्र कौशिक जिस नाम से पाकिस्तान घुसता है पाकिस्तान में उसका नाम नबी अहमद शाकिर था और उसके पहचान पत्र में भी।

तो पाकिस्तान में कुछ समय रहने के बाद रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) करांची के Law Collage में दाखिला लेता है। उसके बाद रवीन्द्र कौशिक की लॉ की डिग्री पूरी होती है और उसके बाद स्नातक (Graduation) करता है। एक दिन पाकिस्तान के एक अख़बार में एक विज्ञापन दिखता है, जिसमे आर्मी की वेकेंसी निकलीं थी। तो यहाँ पर रवीन्द्र कौशिक को एक बहुत बड़ा आईडिया आत और कहता है कि इससे बेहतर मौका कभी मिल ही नहीं सकता है। तो रवीन्द्र कौशिक आर्मी के लिए फॉर्म भरता है जिसमे रवीन्द्र कौशिक का सिलेक्शन हो जाता है और उसके बाद आर्मी की ट्रेनिंग होती है।

उसके बाद रवीन्द्र कौशिक पाकिस्तान की सेना में नबी अहमद शाकिर के नाम से एक अफसर बन जाता है। अब तो रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) के लिए हर चीज मुमकिन हो चुका था जो किसी ने कभी नहीं सोचा था अब वो होनेवाला था। जब इस बात की खबर भारतीय रॉ अफसर को होता है तो उसकी खुशी सातवाँ आसमान पर हो गया था। और उसके बाद रवीन्द्र कौशिक का प्रमोशन तक भी होता है, और एक मेजर का पद मिलता है। उसके बाद रवीन्द्र कौशिक बाकि के जासूस की मदद से पाकिस्तान की सारी ख़ुफ़िया जानकरी भारत तक पहुंचाई जाती है।

धीरे धीरे समय समय पर रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) पाकिस्तान की डिफेन्स आर्मी की सारी महत्वपूर्ण जानकरी भारत भेजती रही जिससे भारत की सेना को पाकिस्तान फ़ौज की चाल पहले ही पता चल जाती थी। जिससे भारतीय सेना को बहुत मदद मिल जाती थी और अपने आप को उससे सुरक्षित कर लेते थे।

रवीन्द्र कौशिक को जब पाकिस्तान की एक लड़की से प्यार होता है

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) को उसी आर्मी में एक बड़े अफसर की बेटी से बेइन्तिहा मोहब्बत हो जाती है, और रवीन्द्र कौशिक अमानत से शादी करना चाहता था और अमानत भी रवीन्द्र कौशिक से प्यार करती थी। शादी करने के लिए रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) सबसे पहले रॉ के ऑफिसर से इजाजत लेती है, और रॉ शादी के लिए इजाजत दे देती है। उसके बाद रवीन्द्र कौशिक और अमानत की इस्लामिक रीति रिवाज से शादी कर दी जाती है।

इस दौरान रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) के गए हुए करीब 5 से 6 साल बीत चुके थे, और उस दौरान एक बार भी घर नहीं आया था। इधर रवीन्द्र के सपरिवार बहुत परेशान हो रहे थे दरअसल रवीन्द्र अपने पुरे परिवार को ये बता कर गया था कि वो काम करने दुबई जा रहा है। बीच में कई दफा रवीन्द्र कौशिक पत्र भी भेजता था अब वो भी नहीं आ रहा है, तो रवीन्द्र कौशिक के बड़े भाई की शादी होनेवाली थी। साल 1981 में इनके भाई का शादी होता है जिसमे रवीन्द्र को शामिल होना था जब ये बात रवीन्द्र कौशिक को पता चला तो वो भी शादी में शामिल होना चाहता था।

शादी में शामिल होने के लिए रवीन्द्र कौशिक रॉ के अफसर से इजाजत मांगता है और रॉ मान जाता है और किसी तरह रॉ अधिकारी रवीन्द्र कौशिक को भाई के शादी में शामिल होने का इन्तेजाम कर देती है। भारत में भी कुछ पाकिस्तानी जासूस है और गर रवीन्द्र की सच्चाई लीक हो जाती गर उसको कोई पहचान लेता तो उसके पुरे परिवार को खतरा हो सकता था। तो रवीन्द्र कौशिक हिजाज ( इस्लामिक तीर्थयात्रा ) के बहाने सऊदी अरब फिर वहां से दुबई और फिर वहां से भारत आते हैं, और श्रीगंगानगर अपने घर पहुँचता है।

(उम्रह - हिजाज,मक्का,सऊदी अरब के लिए इस्लामिक तीर्थयात्रा होता है,जो मुसलमानों द्वारा कभी भी किसी वक्त भी जा सकता है।)

और अपने भाई के शादी में साल 1981 में शामिल हो पाता है और शादी खत्म होने के बाद रवीन्द्र को उनके माता पिता कहते हैं बेटा तुम्हे भी अब शादी कर लेनी चाहिए। उसके बाद रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) किसी तरह हिम्मत जुटा कर कह पाता है कि मैंने दुबई में ही शादी कर ली है। रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) ने शादी तो की थी ये सच थी लेकिन दुबई में नहीं पाकिस्तान में एक मुस्लिम लड़की से जिसके बारे में नहीं बताता है। सच्चाई आखिरी में बताता है जब रवीन्द्र को भारत सरकार की गलती से पाकिस्तानी सेना के द्वारा पकड़ लिया गया था।

शादी खत्म होने के बाद रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) का परिवार के साथ बात विचार होने के बाद सन् 1981 अपने परिवार से बिदा लेने का वक्त आ गया था। रवीन्द्र अपने परिवार से कहता है कि वो वापस दुबई जा रहा है काम करने के लिए उसके बाद दुबई के लिए रवीन्द्र कौशिक रवाना हो जाता है। वहां से दुबई फिर वहां से पाकिस्तान पहुँच जाता है ये जो शादी में ही रवीन्द्र कौशिक का अपने परिवार के साथ आखिरी मुलाकात थी इसके बाद से रवीन्द्र कौशिक कभी भी भारत नहीं आ पाते हैं और न ही कभी अपने परिवार वालो से मिल पाते हैं।

साल 1981 रविन्द्र कौशिक का परिवार के साथ ये आखिरी मुलाकात थी इसके बाद रविन्द्र कौशिक अपने परिवार से कभी भी मुलाकत नहीं हो पाती है, जिंदगी के आखिरी समय में भी अपने देश अपने परिवार से नहीं मिल पाते हैं, कुछ ऐसी जिंदगी रवीन्द्र (Ravindra kaushik) की हो गई थी।

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) का फिर से 1981 में पाकिस्तान पहुँचने के बाद बगैर किसी को कुछ पता लगा शक हुए अपने काम में लग जाता है। कुछ सालो तक सब ठीक ठाक चल रहा था लेकिन सन् 1983 में भारत सरकार की एक गलती से रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) को पाकिस्तानी सेना द्वारा पकड़ लिया जाता है।

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) कैसे पकड़ा जाता है?

अगर भारत सरकार ये गलती नहीं करती तो शायद रवीन्द्र (Ravindra kaushik) आज तक पकड़ में नहीं आता लेकिन यहाँ सरकार की एक गलती से रवीन्द्र कौशिक के खिलाफ पाकिस्तान को पुख्ता सबूत मिल जाता है, और रवीन्द्र कौशिक को रंगे हाथ पकड़ लिया जाता है। तो यहाँ भारत सरकार की गलती ये थी कि न जरुरत होते हुए भी रवीन्द्र कौशिक का न कहने पर भी भारत सरकार के आग्रह से जबरदस्ती उसके पास एक भारतीय जासूस को भेज देता है। जिसको शायद जासूसी के बारे में कुछ भी पता ही नहीं था की वो एक नाम से कितने लोगो को जान जोखिम में डाल रहा था।

तो यहाँ पर होता ये है कि भारत सरकार के आग्रह से रॉ के अफसर एक जासूस को किसी छोटे काम से सन्न 1983 में पाकिस्तान भेजता है। जिसमे उससे कहा जाता है तुम्हे पाकिस्तान में जाकर नबी अहमद शाकिर से मिलना है जो भारत के लिए ही काम करता है। और उससे मिलकर तुम्हे एक डॉक्यूमेंट देना है और नबी अहमद शाकिर को कुछ संदेश भी देना है।

इनायत मसीह (Inayat Masih) कौन था?

जिस जासूस को पाकिस्तान भेजना जाना था रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) से मिलने के लिए उस जासूस का नाम ही इनायत मसीह (Inayat Masih) था। ये बदला हुआ नाम है इनायत मसीह (Inayat Masih) पंजाब का रहने वाला था, करांची में दोनों की मुलाकात होने वाली थी। लेकिन इनायत मसीह (Inayat Masih) की किस्मत ही खराब थी, इनायत मसीह जैसे ही पाकिस्तान सीमा को पार करता है तो वहां पर किसी को शक होता है। और उससे पूछताछ करते हैं उसके बाद पाकिस्तानी सेना के हवाले कर देता है उसे पाकिस्तानी आर्मी गिरफ्तार कर लेती है।

गिरफ्तार करने के बाद पाकिस्तानी आर्मी उससे पहले नरमी दिल से पेश आते है लेकिन इनायत मसीह (Inayat Masih) कुछ भी नहीं बताता है। लेकिन फिर उसके बाद इनायत मसीह (Inayat Masih) के साथ सेना सख्त से पेश आते है और पीटना शुरू करता है इनायत मसीह को टॉर्चर किया जाता है। उसके बाद इनायत मसीह टूट कर बिखर जाता है और सब सच्चाई बता देता है कि वो एक भारतीय जासूस से मिलने आया है जो आपकी ही सेना में एक मेजर के पद पर है। ये सब सुनने के बाद पाकिस्तानी आर्मी अचंभित हो जाता है और सोचता है कि ये कैसे हो सकता है?

उसके बाद इनायत मसीह (Inayat Masih) रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) के बारे में बताता है कि नबी अहमद शाकिर के नाम से रवीन्द्र कौशिक जो की जासूस है वो आपके आर्मी में बहुत सालो से भारत के लिए काम कर रहा है। भारतीय रॉ के कहने पर मैं उसी से मिलने के लिए यहाँ आया था, ये सब पता चलने के बाद पाकिस्तान की सेना रंगे हाथ पकड़ने के लिए एक जाल बिछाता है। और उसके बाद इनायत मसीह से कहता है तुम अपने साथी से जरुर मिलोगे लेकिन मेरे हिसाब से जो तुम्हारा मिलने का समय है और जिस जगह पर तुम वहीं मिलोगे लेकिन तुम दोनों पर हमारी नजर रहेगी।

अगर तुमने जरा सा भी चालाकी करने की कोशिश की तो तुम दोनों अपनी जान से जाओगे इसलिए तुम मेरी बात याद रखना। तो दोनों की करांची के ही एक जिन्ना गार्डन है मुलाकात करने की बात हुई थी दिन शुक्रवार (जुम्मा) था अप्रैल का महिना था साल 1983 थी। तो करीब सुबह साढ़े सात बजे (7:30 AM) इनायत मसीह (Inayat Masih) करांची के जिन्ना गार्डन में पहुँच जाता है। उसके बाद वहां पर थोड़ी देर बाद रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) भी पहुँचता है दोनों बेंच पर बैठते हैं इनायत मसीह रवीन्द्र कौशिक को वो डॉक्यूमेंट देता है जिसको देने के लिए इनायत मसीह आया था।

डॉक्यूमेंट देने के बाद वहां गार्डन में छिपे पाकिस्तानी सेना आते है और रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) और इनायत मसीह को गिरफ्तार कर लिया जाता हैं।

रविन्द्र कौशिक के साथ पाकिस्तानी आर्मी क्या सलूक करती है?

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) और इनायत मसीह (Inayat Masih) को गिरफ्तार करने के बाद रवीन्द्र कौशिक से बड़े सख्ती से पाकिस्तानी सेना पूछताछ की प्रक्रिया शुरू होती है। जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल होगा कि आखिर रवीन्द्र के साथ पाकिस्तानी सेना ने क्या क्या नहीं किया होगा सच्चाई जानने के लिए। रवीन्द्र कौशिक से सच जानने के लिए पाकिस्तानी सेना हर वो टॉर्चर करता है जिससे आदमी सच बोलने लगता है लेकिन यहाँ पर रवीन्द्र कौशिक एक शब्द तक नहीं बोला और मरते दम तक एक शब्द नहीं कहा की वो एक जासूस है और वो भारत के लिए जासूसी का काम करता है।

रवीन्द्र (Ravindra kaushik) को बहुत सी यातनाएं दी जाती है कई कई दिन तक रवीन्द्र को भूखा प्यासा रखा जाने लगा था। कुछ समय के तत्पश्चात रवीन्द्र की जो बीबी थी अमानत रवीन्द्र कौशिक की सच्चाई के बारे में पता चल जाती है। और ये भी पता चल जाता है कि नबी अहमद शाकिर (रवीन्द्र) एक हिन्दू है और वो भी भारत का रहने वाला है और एक जासूस है। रवीन्द्र की बीबी (बेगम/पत्नी) रवीन्द्र से मिलने के लिए पाकिस्तान के सियालकोट जेल में मिलने के लिए आती है। और तब तक रवीन्द्र कौशिक का अमानत से एक बेटा भी हो चुका था जिसका नाम आरिब (Aareeb) था।

जब रवीन्द्र से मिलने के लिए उसकी बीबी अमानत जेल आती है तो साथ में उसके बेटे को भी ले के आते है। उसके बाद से रवीन्द्र कौशिक की बीबी अमानत कभी भी जेल में रवीन्द्र कौशिक से मिलने के लिए नहीं आई। एक रिपोर्ट के मुताबिक अपनी पत्नी को एक पत्र भी लिखा था जिसमे वो लिखते हैं कि मेरी वजह से आपकी जिंदगी ख़राब हो गई है हो सके तो मुझे माफ़ कर देना। और जब कुछ समय के बाद पाकिस्तान के लोगो को पता चली की अमानत उस जासूस की बेगम है तो उसके साथ हर वक्त गलत व्यवहार करना शुरू कर दिया गया।

पर इसमें रवीन्द्र कौशिक की बीबी अमानत की कोई गलती नहीं थी ये वहां के लोगों की गलत मानसिकता थी सोच ही वैसी थी। उसकी बीबी पर आये दिन जुल्म किया जाने लगा उन्हें गलत नजर से देखा जाने लगा।

इधर पाकिस्तानी सेना रवीन्द्र हर तरह से तोड़ कर देख लिया लेकिन वो एक शब्द तक नहीं कहा की सच्चाई क्या है? पाकिस्तानी सेना हर बार पूछता कि बताओ तुमने पाकिस्तान की कौन कौन सी ख़ुफ़िया जानकारी भारत तक पहुंचाई है। लेकिन रवीन्द्र कौशिक कुछ नहीं बताता है जिस तरह वो कॉलेज में कभी थियेटर में नाटक किया करता था आज सच में खुद निभा रहा था उसे अपने आप पर गर्व हो रहा था कि वो देश के लिए कुछ कर पा रहा है। और रवीन्द्र कौशिक को ये भी पता था कि अगर वो सच्चाई भी बता दे उसे पाकिस्तानी सेना नहीं छोडने वाला है।

रवीन्द्र कौशिक का आर्मी कोर्ट में जासूसी करने के जुर्म में और आर्मी की सारी ख़ुफ़िया जानकरी बाहर भेजने के जुर्म में उस पर मुकदमा चलता है। और आखिरकार में रवीन्द्र को जासूसी करने के जुर्म में पाकिस्तान की कोर्ट फांसी की सजा सुनाती है, रवीन्द्र को लगता था कि उसे भारत सरकार यहां से छुड़ा लेगी लेकिन ये रवीन्द्र कौशिक का वहम बन कर रह जाता है भारत सरकार कभी भी रवीन्द्र कौशिक की मदद नहीं करती है मरते दम तक नहीं। अगर पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते होते ये फिर अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश करते और कुछ बात विचार कारते तो शायद रवीन्द्र को छुड़ाया जा सकता था।

जब इस तरह का मामला होता है तब दोनों देशो के बीच बात विमर्श करके इसे सुलझाया जाता है और ऐसा कई बार हुआ है। दोनों देशो के मुजरिमों या फिर गलती से दुसरे देश में कोई आदमी पकड़ा जाता है टी एक समझौता के तहत लोगो की अदला बदली किया जाता है। इस केस में भी रवीन्द्र कौशिक के साथ किया जा सकता था लेकिन भारत सरकार ऐसा नहीं करती है। ये सब चीजो के बारे में रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) को भी अच्छे से पता था और एक उम्मीद थी ऐसा करके उसे भारत सरकार बचा लेगी लेकिन अफ़सोस ऐसा कभी नहीं होता है।

रविन्द्र कौशिक के घर वालो कब कैसे सच्चाई पता चलती है?

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) अपनी सूझ बूझ से भारत सरकार को पत्र लिखता है और साथ में एक पत्र अपने घर भी लिख भेजता है। ये पत्र उर्दू में लिखी गई थी और रवीन्द्र कौशिक के घर मरण उर्दू सिर्फ उनके पिताजी को ही आती थी, जब एक दिन रवीन्द्र के द्वारा लिखा गया पत्र उसके घर पहुँचता है तो वह पत्र रवीन्द्र के पिताजी को मिला। उसके बाद उनके पिता पत्र पढ़ते है और उस पत्र से उन्हें पता चला की उनका पुत्र रवीन्द्र पाकिस्तान की जेल में बंद है और रवीन्द्र को जासूसी के जुर्म पाकिस्तान कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है।

रवीन्द्र कौशिक अपने घर भेजे गए पत्र में लिखता है कि वो भारत सरकार से मेरे रिहाई बारे में बात करे और साथ में मीडिया वालो से भी मेरे बारे में बताये और मेरी आवाज सरकार तक पहुँचाने की कोशिश करे। अगर सरकार चाहेगी तो हमें यहाँ से आजाद करा सकती है ये संभव है, जब ये सब रवीन्द्र पिताजी ने पढ़ा तो उन्हें तुरंत हार्ट अटैक आ गया और उनकी मृत्यु हो गई। रवीन्द्र का पत्र सिर्फ उनके पिताजी ने ही पढ़ा था बाकि के घर वालो को पता भी नहीं थी कि आखिर पिताजी को अचानक हार्ट अटैक कैसे आया? वो पत्र अभी भी घर में ही मरोड़ कर फेंका पड़ा रहता है।

बहुत समय तक को वैसे ही पड़ा रहा किसी की भी उस पत्र पर नजर नहीं पड़ती है और किसी को कुछ पता ही नहीं चल पाता है। लेकिन कुछ दिन बाद आखिरकर उस पत्र पर घर वालो की नजर पड़ ही जाती है पत्र उठाने का देखा की वो पत्र तो उर्दू में है। तो उसके घर में उनके पिता के आलावा उर्दू पढने किन्ही को नहीं आता था, उसके बाद एक उर्दू पढने वाले को पकड़ा जाता है उससे वो पत्र पढाया जाता है। तब जाकर रवीन्द्र कौशिक के पुरे घर वालो को पता चला की रवीन्द्र पाकिस्तान की जेल में बंद है और इसी पत्र की वजह से उनके पिताजी को भी हार्ट अटैक आया था।

ये सब पता चलने के बाद पूरा परिवार दिल्ली पहुँच जाता है रवीन्द्र कौशिक को पाकिस्तान जेल से रिहा करने का दरख्वास्त लेकर वो वहां होम सेकेट्री से जाकर मिले वो कुछ न कुछ जरुर मदद करेगा ऐसा उस पत्र में लिखा था। लेकिन वहां उनकी मदद करने से हर सरकारी दफ्तर इंकार कर देते हैं, वो कोई भी इस झमेले नहीं पड़ना चाहता था यानि उसकी कोई मदद ही नहीं करना चाहता था। फिर यहाँ से भी रवीन्द्र कौशिक को कुछ पत्र लिखे जाते है और उन्हें बताया जाता है उनकी यहाँ कोई मदद करने के लिए तैयार नहीं हो रहा है।

उसके बाद रवीन्द्र (Ravindra kaushik) भी कुछ पत्र लिखते है सरकार से बड़ी मिन्नतें करते हैं लेकिन कोई फायदा नजर नहीं आ रहा था। और कुछ ऐसे भी पत्र लिखे थे जिसमे रवीन्द्र लिखता है सरकार की नीतियों पर सवाल खड़ा करते है और कहते है कि अगर एक सच्चे देशभक्त की ऐसी हालात होती है तो शायद मैं कभी ये काम करता ही नही। मुझे सरकार से ऐसी कुछ उम्मीद नहीं थी और न ही अब मुझे करनी चाहिए की अब वो किसी तरह की मदद हमारी कर सकती है, मैंने अभी तक अपनी जुबान से एक शब्द तक नहीं निकाला की मैं कौन हूँ? अब वैसे भी सरकार को मेरी जरुरत भी क्या है?

रवीन्द्र कौशिक जब सियालकोट जेल में था तब न जाने कहाँ से दो भारतीय जासूस पाकिस्तान की सेना पकड़ लेती है। उन दोनों भारतीय जासूसों में एक नाम गोपाल दास और दूसरा का नाम करामत त्राहि था, तो इन दोनों भारतीय जासूस को पता चला की इसी जेल में एक और भारतीय जासूस को पकड़ कर रखा गया है। तो किसी तरह रवीन्द्र से वो दोंनो जासूस मिलता है बातचीत होती है धीरे धीरे उसके बारे में सब चीजे पता चलती है। उस दरमियान रवीन्द्र का तबियत भी बहुत नाजुक हो चुका था बहुत कमजोर हो चुका था क्योंकि उसे वहां पर सही से खाना नहीं मिल रहा था।

और बाद में पता चलता है कि रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) को हेल्थी खाना न मिलने की वजह से टीबी हो गया था। फिर एक दिन उन 2 भारतीय जासूसों को छोड़ दिया जाता है आखिर कैसे उन 2 जासूसों को पाकिस्तानी सेना छोड़ देती है ये तप पता नहीं लेकिन इसके पीछे कोई वजह जरुर होगी। और जब दोनों भारतीय जासूस पाकिस्तान की जेल रिहा होकर भारत लौटता है तो उसमे से एक करामत त्राहि रवीन्द्र की जेल की दास्ताँ लोगों तक पहुंचाती है। रिहा होते समय करामत त्राहि को रवीन्द्र ने कुछ पत्र अपने परिवार के लिए भेजे थे और साथ में शायद अपनी बीबी बच्चे की फोटो भी भेजते हैं।

ताकि अगर कभी रवीन्द्र जी (Ravindra kaushik) की बीबी बच्चे भारत आये तो उसे पहचान सके, और कुछ साल फिर ऐसे ही बीत जाता है। रवीन्द्र का जेल में हालात और भी नाजुक होती जा रही थी, उसके बाद पाकिस्तान के कोर्ट में फांसी के खिलाफ अपील की जाती है। जिसके बाद पाकिस्तान कोर्ट इस फांसी की सजा को 25 साल की उम्रकैद में बदल देता है, और एक पत्र अपने परिवार वालो को लिखता है। जिसमे रवीन्द्र अपने तबियत खराब के बारे में बताता है और लिखता है उन्हें टीबी हो गया है, और यहाँ टीबी की दवाई नहीं मिलती, आप वहां से कुछ टीबी की दवाई भेज दो।

रवीन्द्र कौशिक का दिमाग कबीले तारीफ

रवीन्द्र जी (Ravindra kaushik) के परिवार वाले किसी तरह रवीन्द्र जी के लिए दवाई का प्रबंध करके पाकिस्तान जेल भेजवा देता है। रवीन्द्र जी के पास दिमाग बहुत था कुछ न कुछ हर चीज का समाधान निकाल ही लेता था, रवीन्द्र कौशिक को एक बहुत ही बेहतरीन आईडिया आता है। दरअसल रवीन्द्र जी जिस जेल में बंद था वहां पर उस समय रेडियो से कैदियों को अलग अलग प्रोग्राम सुनाया जाता था। जिसमे एक प्रोग्राम था मिट्टी दी खुशबू उस समय जेल के कैदियों को मिट्टी दी खुशबू जो भारत से प्रसारण होता था, यह प्रोग्राम को लोग बड़े चाव से सुनते थे और पड़ोसी देश भी इस प्रोग्राम को सुनते थे।

इस प्रोग्राम को राजस्थान के बहुत से हिस्सों में सुना जाता था इसके आलावा हरियाणा, पंजाब आदि कई हिस्सों में सुना जाता था। उस समय ये प्रोग्राम लोगों का एकमात्र साधन था, और इसके ऑफिस में लोगो द्वारा बहुत से पत्र भी लिखे जाते थे। इस रेडियो प्रसारण केंद्र की एक सबसे बड़ी खासियत ये थी की इसका प्रसारण रेडियो फ्रीक्वेंसी 300 किलोवाट थी। जो 3000 किलोमीटर क्षेत्र तक रेडियो प्रोग्राम को बड़े आसानी से कर सकता और लोग उसे बड़े आसानी से सुन सकता था।

तो यहाँ पर रवीन्द्र ने दिमाग लगाया और किसी तरह एक संदेश या फिर एक पत्र के माध्यम से अपनी बात बाहर किसी तक पहुंचाता है। जिसमे रवीन्द्र कौशिक ने कहा कि उसके परिवार वालो को किसी तरह मिट्टी दी खुशबू के प्रोग्राम के दफ्तर में ले जाये और वहां से अपने बारे कुछ बोले अपना परिचय दे। उसके बाद रवीन्द्र के परिवार वाले को उस मिट्टी दी खुशबू के प्रोग्राम में कोई लेकर जाता हैं और रेडियो पर अपना होने का संदेश देते है और अपने बारे में सब कुछ बताते हैं। और उस समय रवीन्द्र पहली बार रेडियो के द्वारा अपने घर वालो की आवाज सुनते हैं उनकी हालात का पता चलता है।

रवीन्द्र (Ravindra kaushik) को उसी रेडियो प्रोग्राम के द्वारा उनके परिवार वालो के बारे पता चलता है और साथ में पहली बार ये भी पता चलता है कि उनके पिताजी का हार्ट अटैक से मौत हो चुकी है। ये सुनकर रवीन्द्र को बड़ा दुःख होता है उनके परिवार की हालत भी बहुत खराब है। और पूरा परिवार अब जयपुर में रहता है श्रीगंगानगर वाले घर में अब कोई नहीं रहता है ये सब खबर उसी रेडियो से रवीन्द्र जी को पहली बार मिली थी।

रवीन्द्र कौशिक की मृत्यु कब और कैसे हुई?

रवीन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) को जेल में रहने के दरमियान अच्छा खान पान नहीं मिलने के कारण टीबी हो चुकी थी। और धीरे धीरे रवीन्द्र जी को बहुत सी बिमारियों ने घेर लेती है और एक दिन आख़िरकार 21 नवम्बर 2001 को पाकिस्तान के मुल्तान जेल में रवीन्द्र की मृत्यु हो जाती है। रवीन्द्र कौशिक के परिवार वाले करीब 16 साल तक भारत सरकार से मदद मांगती रही हर दफ्तर में अपने बेटे की दास्ताँ सुनाती रही मिन्नतें करती रही लेकिन किसी ने रवीन्द्र के परिवार वालो की एक नहीं सुनी।

जिस समय रवीन्द्र को जिस सरकार की गलती से पकड़ा गया था उस समय इंदिरा गाँधी की काग्रेस की सरकार थी। और खुद इंदिरा गाँधी ने बाकायदा रवीन्द्र को उसके कारनामे, उसकी मेहनत पर उसकी महानता पर ब्लैक टाइगर का ख़िताब भी दिया था। लेकिन वही सरकार जब अपने जाबांज फौजी की मदद नहीं करे तो आप क्या करेंगे? ये अपने आप में एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। कई सरकार आई और गई लेकिन रवीन्द्र कौशिक को पाकिस्तान से लाने के लिए किसी ने भी जरा सा रूचि नहीं दिखाई इसे आप क्या कहेंगे?

रवीन्द्र कौशिक ने जिस तरह अपनी जान जोखिम में डालकर देश की सेवा की है शायद ही अब तक किसी ने इस तरह से देश की सेवा की होगी भारत के सैनिकों की जान बचाई होगी। और उसके बदले में रवीन्द्र को क्या मिला कुछ भी नहीं, उसके परिवार वालो को क्या मिला कुछ भी नहीं। रवीन्द्र की मृत्यु के बाद उसी पाकिस्तान की मुल्तान जेल के पीछे के एक जंगल में इस्लामिक रीति रिवाज से रवीन्द्र कौशिक के मृत शरीर को दफ़न कर कर दिया गया।

रविन्द्र कौशिक आखिरी पत्र में क्या लिखता है?

रवीन्द्र (Ravindra kaushik) ने मरने से करीब 3 दिन पहले अपने घर वालो को एक आखिरी पत्र लिखा था। जिसमे उसने लिखा था की जिस देश के लिए मैंने इतना कुछ किया वो देश के लिए शायद अब मैं बेकार हो गया हूँ, अब मेरा कोई काम नहीं है अब मेरी कोई जरुरत नहीं है क्योंकि अब मैं उसके अधीन नहीं हूँ शायद इसलिए वो मुझे ठुकरा रहा है। ऐसा नसीब दोबारा किसी को न मिले की किसी को उसके अपने देश की मिट्टी भी नसीब न हो। और रवीन्द्र कौशिक कहते है कि ऐसी जिंदगी किसी को न मिले, कि उसे वो इज्जत ही न मिले जो इज्जत एक सच्चे देशभक्त को नसीब होनी चाहिए।

Is Ravinder Kaushik alive?

No, 21 November 2001 death in Pakistan jail.

Who is called Black Tiger?

The great raw agent Ravindra kaushik.
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